Friday, August 20, 2010

श्लोक 41-60[मराठी][हिन्दी मे]

श्लोक ४१..[मराठी]
बहु हिंडता सौख्य होणार नाही
शिणावे परी नातुडे हीत कांही
विचारे बरे अंतरा बोधवीजे
मना सज्जना राघवी वस्ति कीजेश्रीराम४१
[हिन्दी मे]
यु ही भटकने से कभी सुख नही मिलता
थकने पर भी कुछ प्राप्त नही होता
विचार करने पर अंतर मे होता रे
हे मन ! सज्जन राघव के मन में बस रे४१
सार्थ..... श्रीरामदासजी कहते है कि हे मनुष्य मन ! अत्यंत व्यर्थ मे भटकने से सुख की प्राप्ति नही होती है अत्यधिक व्यर्थ भटककर थकने पर अपने हित के लिये कुछ भी प्राप्त नही होता है यह सत्य है अत: इस पर विचार करके तो देखो, अपने अंत:करण से पूछकर तो देखो ? इसलिये हे मनुष्य ! अपने को सज्जन व्यक्ति बनाने का प्रयत्न करके श्रीराम स्वरुप मे लीन होकर जीवन व्यतीत करना चाहिये

श्लोक ४२.... [मराठी].
बहुता परी हेचि आतां धरावे
रघुनायका आपुलेसे करावे
दिनानाथ हे तोडरी ब्रीद ग़ाज़े
मना सज्जना राघवी वस्ती कीजे
[हिन्दी मे]
हे मन सज्जन एक मन मे धर ले
जनो में अपना हित तु कर ले
रघुराम बिन कुछ नही होता है रे
सदा मन मे निज ध्यास उसका तु रख रे
अर्थ.... श्रीराम दास जी कहते है कि हे मानव मन ! समाज उध्दार के लिये अपने नामस्मरण से एवं सद् कार्य से श्रीराम को अपना बनाने का प्रयत्न करना चाहिये दीनो के स्वामी श्रीराम चन्द्र जी गरीबो की रक्षा करते है उनका डंका चारो ओर गरजते है इसलिये हे मनुष्य ! सज्जनता पूर्वक आचरण करके श्रीराम के स्वरुप मे लीन होकर जीवन व्यतीत करना चाहिये जिससे अपना जीवन सार्थक हो

श्लोक..४३...[मराठी]
मना सज्जना एक जीवी धरावे
जनी आपले हीत तुवां करावे
रघूनायका वीण बोलो नको हो
सदा मानसी तो निजध्यास राहो४३श्रीराम
[हिन्दी मे]
हे मन सज्जन,मन मे एक धर ले
जनो मे अपना हित तो तु कर ले
रघुराम बिन कुछ होता नही रे
सदा मन मे निजध्यास उसका तु रख रेश्रीराम४३
अर्थ...... श्रीरामदास जी कहते है कि हे मनुष्य मन ! सज्जन व्यक्तियो की तरह श्रीराम चन्द्र जी के नामस्मरण से अपने आपको श्रीराम से जोडने का प्रयत्न करना चाहिये इसमे स्वय,न का भी हित होगा तथा समाज मे जन्-जन् का हित भी कर सकोगे श्रीराम के बिना कुछ ना कहो,अर्थात् पूर्णरुप से राम स्वरुप में लीन हो जाओ सदैव मन में श्रीराम का निरंतर श्रवण ,मनन,चिंतन करते रहना चाहिये यही श्रीराम का नामस्मरण हमें उन तक पहूंचाने की सीढियॉ है

श्लोक ४४..... [,मराठी]

मना रे जनी मौन मुद्रा धरावी
कथा आदरे राघवाची करावी
नसे राम ते धाम दोडूनि द्यावे
सुखा लागि आरण्य सेवित जावेश्रीरा४४
[हिन्दी मे]
हे मन जन में मौन तु हो ले
कथा आदर से राघव की तु कर ले
नही राम वो धाम छोडता जा
सुख के लिये तु एकांत धरता जा
अर्थ...... श्रीरामदासजी कहते है कि हे मानव मन ! लोगो मे अपने को मौन मुद्रा मे रखना चाहिये,अर्थात् अधिक बात नही करना चाहिए सदैव श्रीराम का चिंतन करते रहना चाहिये जिस स्थान पर श्रीराम के नाम का अनादर होता हो अथवा तिरस्कार किया जाता हो उस स्थान पर रुकना सदैव अनुचित होगा, अर्थात् वह स्थान तुरंत छोड देना चाहिये मनुष्य को सुख पाने के लिये चाहे जंगल ही क्यो न मिले? परन्तु श्रीराम का वहॉ आदर अवश्य होता है तो उसे वहॉ भी रहने मे कोई हर्ज नही मुख्य बात यह है कि श्रीराम को पाने के लिये एकांत का सेवन करिये...

श्लोक ४५...[मराठी]

जयाचेनि संगे समाधान भंगे
अहंता अकस्मात येऊनि लागे
तये संगतिची जनी कोण गोडी
जिये संगति ने मती राम जोडीश्रीराम४५
[हिन्दी मे]
जिसके संग से समाधान हटता
अहंकार अकस्मात मन मे समाता
उसके संग की तुझे क्यो है आस
जिसके संग से छोडे राम खास
अर्थ..... श्रीरामदासजी कहते है कि हे मानव मन ! जिसकी संगति से अपनी समाधि अर्थात् ध्यान भंग या शांति भंग होती है और अचानक ही अंहकार की भावना मन मे आने लगती हो उस संगति को कौन पसंद करेगा ? श्रीराम का नाम इतना पवित्र है कि ऐसी संगति कोई भी पसंद नही करेगा जिसकी संगति से बुध्दि में बसा रामनाम भुलाया जाय अत: प्रत्येक व्यक्ति इस बात का जरुर ध्यान रखे कि अपना जीवन सार्थक करने के लिये रामनाम का सतत् स्मरण आवश्यक है अत: सतत् ऐसी संगति का साथ रखो जिससे रामनाम ना छुट पाये

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